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ab: | Fahen: |
ab: | Fahren (schon); |
ab: | schonen . |
f: | schon fahren ; |
z: | ø |
z: | Fahren: Hoch her fahren, |
ef: | das, |
z: | deutlicher, |
z: | sagen |
ef: | außer sich, |
z: | und dieß ist denn wieder soviel als |
z: | seyn; daher |
z: | für |
c: | oben hinausfahren |
z: | kurtz sagt |
z: | griechische |
e: | gr. Wort |
f: | griechische Wort |
z: | ø |
f: | übereinander |
z: | übereinanderherschlagen, (s. |
c: | gewißen |
z: | des Gemüths gebraucht |
z: | Philo , |
ef: | und |
z: | Strafen, 2. B. |
f: | Zustande |
c: | Unglücklichen |
f: | Strome |
ez: | gr. |
f: | griechische |
z: | Zu |
z: | 2. |
z: | kann: s. |
z: | 2. Tim[.] |
f: | Gebrauche |
f: | fahren |
z: | Worts fahren |
z: | Solchen Weiblein ist zu allen Zeiten und an allen Orten mit Lehrern am meisten gedient gewesen, die selbst nur frömmeln, ohne vor Gott und dem Gewissen fromm zu seyn; und denn solchen Lehrern mit ihnen. |
ab: | ø |
abc: | Fallstrick: |
f: | Orte |
abc: | der Strick |
bc: | kommt |
f: | Stricke, |
a: | Blitzstral |
ef: | Falsch; |
f: | Zweydeutigkeiten |
a: | seyn |
abf: | viel, |
ab: | Werkzeug: |
ab: | herrliches |
f: | seyn. |
ab: | Und eben |
f: | Apostelg. |
ab: | Dieser |
f: | auserlesenes |
z: | Faß, |
z: | ø |
z: | wird |
z: | Griechen, |
z: | Lateinern, |
ef: | gebraucht, |
z: | jede Art des Werckzeuges gebraucht, |
z: | ø |
ef: | sogar |
z: | sogar Kleidungsstücke, |
z: | 5. |
z: | M. |
c: | 5, |
z: | wo man übersetzen muß: das |
z: | männliche, |
z: | Weibskleider |
z: | kömmt |
f: | Apostelg. |
z: | ø |
ab: | ø |
z: | ø |
z: |
Apostg. 10, 11. ich sahe den Himmel offen und ein Stück Zeug, wie ein großes leinewandnes Tuch etc.
|
ab: | Fasten: |
f: | N. |
abc: | Testament |
ab: | Petri |
c: | Pet. |
ab: | Faul: |
ab: | Fegopfer: |
ef: | von |
f: | Brief |
ab: | S. |
b: | ein |
f: | andere |
f: | ø |
abc: | Einrichtung des Menschen |
f: | Vortrage |
abc: | mehr nutzen |
a: | Kreuz , Liebe |
b: | Kreutz , Liebe |
f: | Kreuz |
f: | 1. 2.). |
f: | vergl. V. |
abc: | ø |
f: | Feindschaft, |
abc: | ist nach dem gleich vorhergehenden |
c: | Lehre, |
f: | s. |
ab: | Fels: |
ef: | dabey |
ab: | zurückgeben: Denn ganz |
ab: | ø |
a: | antwortet |
bc: | Nahmen |
f: | ø |
a: | Der Sohn des lebendigen Gottes,“ |
abef: | „Und |
f: | lebendig, |
c: | Methapher |
a: | Metapher; s. Hölle ) |
b: | Metapher; s. Hölle [)] |
z: | ø |
f: | Fels |
z: | Fels der Aergerniß, |
z: | 1. Petr. 2, 8. |
ab: | ø |
f: | seyn, |
cef: | seyn |
z: | Ferne seyn; |
f: | Apostelg. |
f: | gemeynt |
z: | gemeint: Jacobus 1, 1. versteht sie unter den zwölf Geschlechtern, die |
z: | Griechen , in diesen Zusätzen |
ab: | ø |
ef: | Feuer; ewiges, höllisches; |
f: | Marc. |
f: | eigene |
f: | V. |
a: | anderweitige |
ab: | Wurm |
f: | welche |
ab: | entweder |
a: | vorzustellen: |
abc: | merke |
f: | angeht; |
b: | S. |
a: | angeht: S. |
abc: | welches |
a: | sagen; die Zeit wirds lehren – |
f: | Hebr. |
abc: | ebräischer |
e: | Eyfer |
f: | Feuerflammen, Hebr. |
ab: | sind, |
abc: | ebräischen |
f: | Sprachgebrauche |
f: | Brief |
c: | Ebräer |
f: | sollte, vergl. |
f: | Veränderungen |
c: | ø |
ab: | ø |
f: | Feuerofen, |
ab: | dem, |
ef: | Quaal |
f: | Finden, |
ab: | Text |
ab: | ø |
ef: | wie es |
a: | Gegensatz – |
a: | – auf den Weg des Friedens (Heils) – |
bc: | (Heils) – |
f: | vollkommen |
ab: | den |
abc: | und |
abf: | Apostelg. |
ab: | S. |
ab: | Fleisch: |
f: | N. |
abc: | Neuen Testament |
a: | Paullinischen |
f: | mannichfaltig |
z: | ø |
abc: | ø |
abc: | so benannt, so daß |
bc: | Fleisch |
z: | Fleisch: Zu den angef. |
bc: | Fleisch |
f: | Mensch, |
abc: | bedeutet |
a: | 20. |
ab: | ø |
z: | sagt. |
z: | ø |
z: | auch schon |
ab: | ø |
ab: | den |
f: | Apostelg. |
ab: | S. |
f: | Schwachheit, Hebr. 5, 7. |
z: | In der Bedeutung des Leibes kömmt es noch vor 1. Cor. 7, 28.leibliche Trübsal – |
af: | In so fern |
e: | In sofern |
a: | es |
b: | Leib |
f: | Fleisch, |
c: | soviel |
f: | entgegengesetzt |
ab: | Vernunft, entgegengesetzt |
c: | Geist [.] |
z: | Die Sinnlichkeit ist zu verstehen Röm. 7, 18. |
z: | ich |
z: | etc. |
ab: | ø |
f: | Röm. 8, 3. |
f: | enthielten |
f: | Röm. 8, 12. |
f: | Forderung |
a: | brauchten: |
ab: | höchstunglücklich |
a: | Lebt |
f: | Gal. 5, 19. |
f: | Gal. |
a: | ø |
f: | s. |
f: | Grundtexte |
abcef: | Petr. |
a: | dahinleben |
z: | ø |
f: | 41 |
a: | habe: |
a: | Kraft, |
ef: | sagen: nach eurer Gesinnung gegen mich wäret ihr wohl ganz willig dazu; aber die cörperliche Schwachheit hindert euch daran. |
ef: | wer |
f: | geboren |
ab: | umzuschaffen. – |
z: | ø |
z: | schon bemerkt haben |
z: | welches allerdings schwärmerisch wäre, |
z: | Herrschaft |
c: | desselben |
z: | uns: sinnlich |
ef: | allen |
z: | lediglich den Eingebungen der Sinnlichkeit, |
z: | Sinnlichkeit, |
f: | anderes |
z: | anders |
f: | Sinne |
z: | brauchen; sinnliche |
z: | sinnliche |
z: | empfinden, |
z: | geleitete Sinnlichkeit. – – |
ab: | ø |
ef: | beybehalten |
z: | |z33| Das Judenthum ist gemeint; Röm. 7, 5. |
z: | ø |
ab: | ø |
abc: | Ebräer |
f: | Gut, |
f: | damit |
f: | anderer |
f: | (V. |
f: | Beschnittene, |
f: | Juden, |
a: | Paullinischen |
f: | (V. |
ab: | 5 |
a: | verstehen: |
a: | ø |
a: | unter den Juden |
f: | Gal. 6, 13. |
abf: | Gal. 2, 20. |
f: | V. |
ef: | jetzt |
ab: | ø |
bcef: | Dies |
a: | abgestorben: Dies |
ab: | – 3, 3. |
f: | geistigen |
ef: | Juden; |
ef: | jetzt |
a: | Landesleute |
ab: | Landesleute |
ef: | es |
f: | gemeynt |
f: | ø |
f: | so viel, als |
a: | 53–57): |
e: | 53–57.). |
f: | essen, (V. |
ef: | Besserung |
ef: | Geistes. |
f: | meyne |
f: | Abendmahl |
f: | Marc. |
c: | Brodt |
f: | verstanden: Vergl. |
ab: | schaffen.[“] |
z: |
ab: | 12., |
ef: | Leibes, |
f: | andere |
abc: | ebräischen |
f: | Sprachgebrauche |
ab: | vielbedeutend: |
ef: | 4. |
abc: | ausnehme; denn |
ab: | Unterscheid |
f: | Unterschiede |
f: | welche |
abc: | ø |
abc: | selbst |
f: | darein |
a: | Sinnlichkeit: |
ef: | einmal |
ef: | 4. |
abcef: | dies |
f: | wieder |
f: | übeln |
f: | oder auch schwach, ebendaselbst V. |
f: | K. |
f: | übersetzen: |
f: | meynten |
f: | ehrlich |
ab: | ø |
abf: | Anschlägen |
f: | Hebr. |
ab: | ø |
ef: | Noth. |
f: | Hebr. |
e: | Einweihungsceremonie |
f: | Einweihungsceremonie |
f: | B. |
ef: | 29. |
a: | geschahe: |
abef: | heißen |
ef: | Einweihungsverordnung |
ef: | Aronitischen |
ab: | Kraft ; |
ab: | Fluch; |
z: | ø |
z: | ø |
z: | sollte |
z: | ø |
z: | ø |
z: | ließ nemlich von den Juden |
z: | höchstunrichtig, auch nur |
c: | laßen |
z: | Gedancken sich einfallen zu laßen, daß Gott ihn verflucht |
ab: | ø |
f: | S. |
e: | Röm[.] |
abc: | aber |
z: | ø |
f: | Fluch der |
abc: | als |
a: | Leute; |
abc: | selbst |
f: | welche |
f: | andere |
f: | ja! |
aef: | nichts.“ |
f: | Fluchs, |
f: | unserer |
ab: | Verfluchte |
z: | ø |
f: | viel, |
ab: | als, |
a: | 25., |
abc: | „esset |
abc: | beunruhiget.“ |
abc: | „Der |
a: | weis |
c: | wollen.“ |
f: | S. |
ab: | wollen.“ |
z: | Vorschrift, Richtschnur |
ab: | Fremdling: |
abf: | geborne |
abf: | niederlassen |
a: | hatten: |
f: | späteren Ursprungs |
f: | sagen: |
a: | gehört |
f: | unfähig. |
f: | bloße |
bf: | S. |
a: | Familie:[“] S. |
ab: | Kothsassen, |
ab: | ø |
z: | ø |
z: | Fremd Fremdling. |
f: | Apostelg. |
z: | andere Wörter, |
f: | Grundtexte andere Wörter |
z: | Nation |
z: | Josephus , vorkommen: S. |
ef: | 2 |
z: | 1. |
f: | Hebr. |
z: | kömmt |
f: | Texte |
fz: | welches, |
fz: | unserer |
z: | Lande, |
z: | Ausländer ), in Ansehung derer sie denn Fremdlinge genannt werden |
z: | S. |
z: | Ponto etc. |
f: | Hebr. |
efz: | Sinn: |
cz: | gestunden |
f: | Vaterlande |
z: | lebten: s. |
ab: | ø |
ef: | Freude. |
f: | ø |
abc: | Sonst braucht es an diesem Ort keiner Erklärung, außer daß |
abc: | ø |
f: | heißen, |
abc: | sollte |
abc: | ø |
abc: | rechtschaffne |
abc: | anzeigt, und |
abc: | die Redart |
abc: | zu umschreiben seyn würde |
f: | Hebr. |
ab: | in dem Psalm (45, 8.) |
ab: | Freudigkeit, |
f: | Freundlichkeit, |
abc: | der selige |
ef: | größtentheils |
a: | bereitwillig, |
a: | Freyheit: |
a: | lehren: |
ef: | Freyheit. |
f: | Sünden, |
f: | V. |
a: | 34. |
f: | Kirchenzucht, |
ef: | den |
f: | Grundtexte |
f: | müßte |
f: | ist) –. |
ef: | Darin |
f: | Berufs, Marc. |
ab: | 15., |
abc: | nemlich |
ab: | Wohllüstling |
ab: | Friede: |
f: | Sprachgebrauche |
ef: | wonach |
abc: | und hiernach sind also |
f: | Marc. |
ab: | ø |
ab: | ø |
f: | Hebr. |
c: | ø |
c: | Frieden, |
c: | gewißen |
ab: | ø |
abc: | ebräischen |
f: | Sprachgebrauche |
f: | unserer |
a: | Gemüthsruhe |
b: | Gemüthsruhe. |
f: | übersetzen, |
ef: | Leben |
f: | Glückseligkeit |
ef: | uns zu neuem Wohlstand zu verhelfen |
abce: | 42. |
f: | Luc. 19, 42. |
f: | Redearten |
e: | verschaft: |
f: | verschafft: |
ab: | des |
f: | gnädige, |
abc: | Ebräer |
ab: | viel |
ef: | ø |
f: | unserer |
ab: | ø |
f: | B. |
b: | Frieden. |
e: | nicht. Dadurch |
f: | 15. nicht. Dadurch |
abcf: | gottgefällige, |
z: |
Friede:
Gehe hin in Friede, nach dem Gr.
Friede mit Gott haben, Röm. 5, 1. eigentlich, bey Gott, ist soviel als, bey ihm gut stehen, sich alles Gute zu ihm versehen dürfen.
Säen im Friedenetc.
|
f: | Hebr. |
ab: | Sprichw. |
f: | Grundtextes |
ab: | Fromm: |
ab: | Alten |
f: | A. |
a: | in unsrer Uebersetzung stehen, |
a: | ø |
ab: | Frommen; |
f: | Sprachgebrauche |
f: | Das – in diesem Sinne sollte man auch in der Büchersprache dieses milde Wort nicht ganz verloren gehen lassen. |
ab: | Frucht: |
ab: | viel, |
f: | eigenen Gebrauche |
a: | bedeudet |
ab: | Almosen |
ab: | Sprichw. |
b: | Uebersetzung, |
abcf: | Inhalt |
abc: | Zusammenhang |
ab: | Stellen: |
f: | V. |
f: | Jesu, |
abc: | sein |
f: | Wohlwollen, |
ab: | daraus |
f: | haben wir |
e: | überflüßigen |
f: | ø |
a: | empfahen |
f: | Röm. 13, 10. |
a: | Aber |
f: | V. |
ab: | „Und |
a: | verborgnen |
abf: | seinem |
ab: | u. s. w.[“] |
f: | andere |
f: | ø |
f: | andere |
ef: | gesammelte |
b: | Kirche: |
a: | die Kirche: |
abc: | eines Leibes, und seinen Leib, welchen er in dieser umschreibt, die |
abc: | durch Gemeine |
abc: | ø |
ab: | der Gottheit, |
ef: | der |
f: | (V. |
ef: | die |
abef: | Erden |
abe: | 15.), |
f: | geschaffene |
ef: | s. |
abc: | Erde ) |
e: | Erde |
f: | Erde . |
a: | allen |
abf: | zusammengefaßt |
ef: | Haupte |
bc: | erfüllt |
a: | allen erfüllt |
f: | vollkommenen |
f: | Leseart |
a: | schlechtweg |
f: | sammelt |
f: | sammeln |
f: | als |
e: | beyde, |
f: | hat, beyde, |
ef: | Heyden, |
ef: | Leibe |
f: | endlich |
abc: | (nicht, |
ef: | übersetzt) |
f: | vollkommener |
f: | Christi , |
a: | bestimmten |
ef: | auch |
abc: | selbst wieder |
abc: | Einer |
c: | nicht |
c: | Christo |
ab: | durch Lehren, die dem Christenthum |
f: | sind. |
ce: | Leibes; |
f: | Leibes: |
f: | V. |
b: | sind; |
b: | zuwider seyn, |
ef: | dienet |
f: | in dem |
f: | Redearten |
c: | laßen |
ab: | ø |
z: |
Fülle: Es scheint, daß die Erklärung dieses Worts von der Kirche im ganzen Briefe an die Epheser und Colosser schon in den ältesten Zeiten da gewesen sey. Denn bey Col. 2, 8. 9.
Ich will nun nochmals die Gründe, die mich überzeugen, daß auch Col. 2, 9. die Kirche nach der bereits gegebenen Umschreibung zu verstehen sey, so kurz als möglich wiederholen.
1) Eph. 1, 23. setzt der Apostel umschreibungsweise dem Wort Kirche das Wort Fülle bey, und das ist nun das eigne Zeugniß des Apostels für diesen ihm eignenSprachgebrauch, wenn die Anwendung davon auf |z36| andere Stellen gemacht wird. So weis ich aus einem ähnlichen Zeugniß, daß ich unter LeibChristi Col. 1, 18. gleichfalls die Kirche verstehen muß, weil er eben in jener Stelle dieses Wort dahin erklärt, welche da ist sein Leib, und ich sehe nicht, wie das zu einer Gegeneinwendung gebraucht werden kann, daß Eph. 1. von der Kirche zwar behauptet werde, sie sey die Fülle desetc.
2) Läßt sich gar nichts dagegen sagen, daß Col. 1, 19.Fülle die Kirche ist, und die ganze Redart inChristo wohnet sie von derselben vorkömmt, wie ich annehme, daß sie auch Col. 2, 9. von ihr zu verstehen sey.
Aber mit der Beurtheilungskraft (welche Mühe es auch koste) das an dem Laut des deutschen Worts wohnen anhängende Gedächtniß losgewunden, sagt der Apostel gar nichts von einwohnen. Die Sache ist kurz diese. Das griechische Wort, welches Luther wohnen übersetzt, wird von den griechischen Uebersetzern des a. T.
|z38| 3) Wie die Gemeine die Fülle Gottes genannt wird, Eph. 3, 19. so heißt sie Col. 2, 9.
Denn der Theil, wo das neue eingesetzt ist, reißt doch immer weiter vom Kleide los, und der Riß wird noch schadhafter. –
So hätte ich denn diese Stelle, deren Sinn nach unsrer Uebersetzung gantz verdunkelt ist, zugleich mit aufgeklärt: – Warum heißen also die Christen die FülleChristi , Gottes, der Gottheit? Nemlich, weil Christus , Gott, die Gottheit, nach bekannten richtigen Erklärungen, in ihnen wohnen, Christi Sinn in ihnen ist, wenigstens seyn soll. Wie natürlich und ungezwungen dünket mich wenigstens das alles!
5)
V.
6)
|
z: | Beschreibungen. |
z: | Im |
z: | Im |
cfz: | selbst. |
z: | Blut |
f: | zusammenverfasset |
f: | beyde, |
z: | I. 8. |
z: | I. 9. |
cz: | gehöret |
ef: | Jesum |
z: | sein |
ef: | Jesum |
f: | S. |
f: | II, |
f: | II, |
f: | hat |
z: | indem, |
f: | S. |
z: | Handschrift |
cz: | entstund |
fz: | – 15. |
f: | schaffte |
f: | I, 16. |
z: | Creutz |
z: | Handschrift |
cz: | entstund |
f: | II, 14 |
cz: | enthält |
f: | III, |
cz: | gehöret |
f: | das |
z: | Deß |
z: | daß |
f: | I, |
z: | welcher |
z: | ist, |
f: | III, |
z: | – 9. |
f: | I, |
z: | – 16. |
f: | S. |
f: | IV, |
f: | II, |
f: | Jesum Christum, |
z: | in |
f: | V, |
f: | III, 5. |
f: | Irrthum). |
f: | IV, 24. |
f: | III, 8. |
ef: | Lüget |
f: | unter einander |
f: | V, |
z: | welcher |
f: | ø |
f: | VI, |
cz: | ø |
cz: | ø |
cz: | Wort, |
f: | Mundes: |
c: | der |
z: | der Ketten |
f: | darin |
cz: | reden, |
f: | IV, |
cz: | ø |
f: | öffne |
f: | IV, |
f: | herzlich |
f: | III, |
ab: | ø |
ab: | Gottes; |
ab: | fürchten: |
f: | eigenen |
ab: | 74., |
abce: | ganz |
f: | ganz vortreffliche |
f: | Hebr. |
abc: | 18–28., |
abc: | geht |
a: | befreyen |
f: | zu kindlicher |
c: | für |
ab: | Liebe und Ehrerbietung gegen |
f: | ihm |
ab: | erziehen; dasselbe |
f: | Ehrfurcht |
ab: | ø |
f: | Grundtexte |
abcef: | zuletzt |
f: | V. |
abc: | der selige |
bcf: | andere |
ef: | Wort |
ab: | Zucht |
ab: | so freundlich ist, als die Sache selbst, und |
ab: | Schamhaftigkeit |
f: | verbundenen |
f: | einmal |
f: | Ehrerbietung |
f: | Ehrfurcht |
f: | fürchten |
c: | oder |
ef: | verehren, |
f: | ø |
cef: | seyn; |
f: | vorher angeführten |
c: | in dieser Betrachtung sollen wir gut und fromm seyn: |
ab: | – Jene |
ab: | nemlich |
abc: | alle |
abc: | desselben |
a: | war: daher |
b: | war; daher |
f: | Redeart |
f: | A. Testamente |
ab: | Einmal |
f: | N. T. |
ab: | ø |
a: | ist |
bc: | ist, |
abc: | ø |
c: | Pet. |
ab: | – nicht |
abc: | gar |
abc: | Wenn man sich denn dahin vereinigen könnte, |
abc: | Gottseligkeit |
ab: | ø |
f: | Gottesverehrung, |
abc: | das rauhere |
abc: | zu sagen, |
f: | reden; |
abc: | das erfreuliche Christenthum dabey gewinnen, und |
f: | andere |
c: | Liebe zu |
f: | Geiste |
ab: | ø |
ef: | 21. |
f: | schon |
abc: | ebräische |
f: | heißen: |
ab: | ø |
z: |
Furcht Gottes: Es schien mir in einem Wörterbuch ein unzeitiger Aufwand zu seyn, gegen den Gebrauch des Worts Gottesfurcht, wann von evangelischen Gesinnungen die Rede ist, das alles zu sagen, was jeder nicht ganz Ungelehrte dabey für sich denken konnte, und für gemeine Leser eben nicht gehörte. Ich muß denn aber schon, um allen Mißverständnissen vorzubeugen, hier noch etwas hinzusetzen:
Der Streit über den Gebrauch dieses Worts von dem ganzen rechtschaffenen Verhalten des Menschen um Gottes willen scheint schon alt zu seyn. So sagt
1. ist in allen ausgebildeten Sprachen der Unterscheid zwischen Furcht, und Ehrfurcht oder Ehrerbietung, zwischen fürchten und |z46|ehren oder verehren festgesetzt, und zeigt jenes allezeit etwas knechtischen an. Das soll nun aber
2. nicht die Religion des Christen seyn; dadurch soll er sich von den Juden unterscheiden:
Ihr habt nicht einen knechtischen Sinn empfangen, daß ihr euch abermal fürchten müßtet etc.
Furcht ist nicht in der Liebe! Lasset uns Gott lieben!
3. Nach den Lehren des Christenthums stehen wir mit Gott in dem erfreulichen Verhältniß der Kinder. Er ist unser Vater; in dieser Betrachtung sollten wir gut und fromm seyn: Für ihn schickt sich also nicht Furcht, wohl aber Ehrerbietung. Ich ehre meinen Vater, sagt daher Jesus, nicht, ich fürchte ihn.
4. Wo daher Luther Gottesfurcht, Gott fürchten, übersetzt, da steht entweder zärtliche Besorgniß im Grundtext, wie Ebr. 12, 28. (dasselbe Wort, welches die nach der vorhergehenden Anführung vom Clemens getadelten christlichen Lehrer mit Furcht verwechselt wissen wollten) und Ehrerbietung geht voran, obgleich Luther auch dieses unrichtig Zucht übersetzt (s.
Die Sache ist also: Auch der rechtschaffenste Jude ward durch die ganze Einrichtung seines Gottesdienstes mehr als Knecht behandelt, der Gott fürchten soll; der Sünder kann vermöge des Gewissens-Gefühls nicht anders, er muß Gott fürchten; aber der Fromme nach den Grundsätzen des Evangelii soll kindliche Gesinnungen gegen Gott haben und ihn ehren, verehren, liebenetc.
Der Mensch, sind die Worte, der zur wahren Erkenntniß gekommen ist, kann auch Herr, Herr, sagen; aber er weiß auch noch mehr als das, und was der Knecht nicht kann, zu sagen, nemlich, unser Vater: Er ist nemlich frey von dem knechtischen Sinn der Furcht gebiert, und durch |z48|die Liebe zu allen Kindesrechten erhoben. Nun treibt ihn die Liebe zur Ehrerbietung gegen den an, den er vorher fürchtete; denn nicht mehr aus Furcht enthält er sich dessen, was verboten ist, sondern thut aus Liebe Gutes.
Wenn ich diese und ähnliche Ueberbleibsel der Gnostischen Lehrart in den Schriften der Alten lese, so kann ich mich nicht enthalten,
|
z: | 1. |
z: | 2. |
z: | 5, |
z: | kömmt |
z: | Josephus vor |
z: | Maccabäern |
ab: | Vertreter |
f: | gleich folgenden |
f: | V. |
ab: | Fürst: |
f: | Apostelg. |
a: | Herr |
a: | ø |
f: | Fürst des |
af: | Erstgeborne |
f: | Apostelg. |
a: | ø |
f: | Fürst der Welt, |
f: | erfordert |
f: | jetzt |
f: | verglich. |
a: | sie, nemlich |
a: | Obrigkeit, |
z: |
Fürst des Lebens: So erklärt es auch
|
a: | Finsterniß |
f: | und |
f: | und |
abc: | Gewaltigen |
f: | und Gewalt, |
f: | Engel , |
a: | vorher: |
ab: | ø |
a: | schanden |
f: | und |
ab: | Himmel, |
ab: | Er |
ef: | gemacht |
f: | verborgenen |
f: | jetzt |
ab: | würde, |
f: | die mannichfaltige |